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कविता

अज्ञातवास

नीलोत्पल


1.

माफ करें
मैं अपनी स्थिति में स्पष्ट नहीं हूँ

मैं उन लक्ष्यों की तरह हूँ
जिन्हें भुला दिया गया है

एक अधूरापन नई तस्वीर के साथ
उपस्थित होता है

मृत्यु, जीवन की अंतिम किस्त है
फुटपाथ अंतिम लोगों का केंद्र है
जहाँ पर आकर निगाहें उलट जाती है
हर कोई चिंदी-चिंदी शब्द बिखेरता है
वास्तव में अंतहीन अंत की तरह
रोज नए तर्क मिलते है

ज्यादातर कान पृथ्वी को नहीं
सुनते है अपने ही बहरेपन को
जो भीतर दफ्न है

हम सुनते हैं गहरा सन्नाटा

मेरा अज्ञातवास शाब्दिक नहीं
मैं सुनता हूँ
अपने से विदा लेता


2.

तुम कहाँ हो
खालीपन पूछता है

तुम आसान लक्ष्य हो,
एक असभ्य उपहार,
चुकाई गई पुरानी रसीद
या फ्रेम में उतारी गई कोई अंतिम तस्वीर

सुनता हूँ
एक बड़ा अवसाद
उस रेल की तरह खाली बोगदे से गुजरता हुआ
जहाँ सर्दियाँ प्रतीक्षारत है आंलिगन की

मैं छिप रहा हूँ
यह इतनी अलग बात है कि
कोई नहीं जानता वजह
सारा रोमांच अदृश्य में है

मैं नहीं जानता बारिश के बाद
रोशनी इतनी उजास भरी क्यों हो जाती है

एक फूल अभी भी झुका हुआ है
पृथ्वी का स्पर्श मीठा स्वप्न है
जीवन का अंतिम लक्ष्य तय नहीं

 


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